Lucke_India - Ram Teri Maya
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हे राम, तेरी माया
जग में बड़ी ही निराली
मानव आता खाली हाथ
और जाता भी है खाली
सांसारिक इस दुनिया में
किसी ने कुछ न पाया है
जगत में कमाया धन
यही पर रह जाता है
सांसारिक दुनिया जाल है
अजीब गोरख धंधा बस
तू 4 लोगों की सोचता
वो 4 देंगे कंधा बस
माया के इस जाल में बस
कर्म होंगे तेरे साथ
दुनिया के लोगों से मिलके
क्यों होता है तू निराश
ऐसी ही ये दुनिया है
माया में फंसे लोग हैं
माया की करते बात है
माया का ही तो खेल है
जब पैसा होता जेब में
तो साथ कोई छोड़े ना
खाली हाथ होगा तू कोई
तेरी तरफ मुड़े ना
दुनिया जैसी आज है
वो वैसी होगी कल भी
समस्या पैदा होती है
तो होता उसका हल भी
ये माया मेरे राम की तो
राम मेरे जाने बस
हे राम मेरे कर्म में
अब कर मुझे सफल भी
(Verse - 2)
लगाव से ही पीड़ा है
और त्याग में ही सुख
है वासना ही मोह तो
उम्मीदों में ही दुःख
समझ में ही ज्ञान है
एकांत में ही सुख और
अंत ही आरंभ है
न मोड़ न उस से रुख
अंधेरा आता साथ लेके
उजाले की उम्मीद भी
वसंत आती साथ में
पतझड़ का लेके रूप भी
जन्म होता प्राणी का फिर
मृत्यु तो निश्चित है जो
आया है वो जाएगा क्यों
मौत को लेके चिंतित है
सब लेख लिखे हैं पहले से
कर्मों की पुस्तक अंकित है
भीतर की तेरी आत्मा
कर्मों से तेरे दुषित है
जीवन का चक्र अजीब है
ये मानव कोई जाने ना
ये माया मेरे राम की
कभी कोई पहचाने ना क्यूं... (Verse - 1)
हे राम, तेरी माया
जग में बड़ी ही निराली
मानव आता खाली हाथ
और जाता भी है खाली
सांसारिक इस दुनिया में
किसी ने कुछ न पाया है
जगत में कमाया धन
यही पर रह जाता है
सांसारिक दुनिया जाल है
अजीब गोरख धंधा बस
तू 4 लोगों की सोचता
वो 4 देंगे कंधा बस
माया के इस जाल में बस
कर्म होंगे तेरे साथ
दुनिया के लोगों से मिलके
क्यों होता है तू निराश
ऐसी ही ये दुनिया है
माया में फंसे लोग हैं
माया की करते बात है
माया का ही तो खेल है
जब पैसा होता जेब में
तो साथ कोई छोड़े ना
खाली हाथ होगा तू कोई
तेरी तरफ मुड़े ना
दुनिया जैसी आज है
वो वैसी होगी कल भी
समस्या पैदा होती है
तो होता उसका हल भी
ये माया मेरे राम की तो
राम मेरे जाने बस
हे राम मेरे कर्म में
अब कर मुझे सफल भी
(Verse - 2)
लगाव से ही पीड़ा है
और त्याग में ही सुख
है वासना ही मोह तो
उम्मीदों में ही दुःख
समझ में ही ज्ञान है
एकांत में ही सुख और
अंत ही आरंभ है
न मोड़ न उस से रुख
अंधेरा आता साथ लेके
उजाले की उम्मीद भी
वसंत आती साथ में
पतझड़ का लेके रूप भी
जन्म होता प्राणी का फिर
मृत्यु तो निश्चित है जो
आया है वो जाएगा क्यों
मौत को लेके चिंतित है
सब लेख लिखे हैं पहले से
कर्मों की पुस्तक अंकित है
भीतर की तेरी आत्मा
कर्मों से तेरे दुषित है
जीवन का चक्र अजीब है
ये मानव कोई जाने ना
ये माया मेरे राम की
कभी कोई पहचाने ना क्यूं...
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(Verse - 1) हे राम, तेरी माया जग में बड़ी ही निराली मानव आता खाली हाथ और जाता भी है खाली सांसारिक इस दुनिया में किसी ने कुछ न पाया है जगत में कमाया
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दुख शुरू थे मेरे जन्म से पहले जन्म से पहले मेरी मौत इंतज़ार मे । कैसे कंहू कहानियाँ अब सुनो पूरी लंबी कतार में।। जन्म हुआ मेरा जेल में माँ बाप का चेहरा मैने देखा
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